माता- पिता, देव, गुरु और वैष्णव ही हमारे सच्चे हितेषी हैं -अर्द्धमौनी
कथाव्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि भगवान् में अपनापन से जो प्रेम प्रकट होता है वही असली प्रेम है
By विवेक कुमार शर्मा
Date 10.05.2023
मुरादाबाद: चूं चूं वाला मन्दिर, मण्डी बांस में आयोजित श्रीगीता भागवत सत्संग में कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि भगवान् में अपनापन से जो प्रेम प्रकट होता है। वह त्याग, वैराग्य, तपस्या आदि साधनों से नहीं होता। स्थूल शरीर की प्रधानता से कर्म, सूक्ष्म शरीर की प्रधानता से चिन्तन-ध्यान और कारण शरीर की प्रधानता से समाधि होती है। स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों से स्वयं (जीवात्मा) का संबंध कभी था नहीं, है नहीं, होगा नहीं और हो सकता ही नहीं। ऐसा अनुभव हो जाने पर सहजावस्था होती है। एक बार सहजावस्था का अनुभव हो जाने पर फिर कभी व्युत्थान नहीं होता। इस सहजावस्था का अनुभव करना ही मानव जीवन का लक्ष्य है।
यदि कोई स्त्री पुरुष, ज्ञान के लिए प्रयत्न नहीं कर पाता हो, भगवान की भक्ति भी नहीं कर पाता है,किसी भी प्रकार का तप, व्रत, उपवास आदि भी नहीं कर पाता है। दान के लिए धन भी पर्याप्त नहीं होता है। तो भी, जप, तपहीन, धनहीन, ज्ञानहीन, भक्तिहीन, स्त्री पुरुष अपने माता पिता, गुरु और वैष्णव भक्तवृन्द की सेवा करके अपने मनुष्य जीवन को सुखमय और सार्थक बना सकते हैं।
इस संसार में ये चार ही हैं। जो सदा ही हितकर विचार करते हैं तथा सदैव ही हितैषी होते हैं माता पिता, गुरु, देव और वैष्णव भक्तवृन्द।
कार्यक्रम में सन्दीप गुप्ता, बृजेश गुप्ता, सरोज गुप्ता, अखिल गुप्ता, आशीष गुप्ता, गौरव गुप्ता, अंकुश गुप्ता ने सहयोग दिया।