उत्तरप्रदेशमुरादाबादसामाजिक
Trending

व्यापारी सुरक्षा फोरम संस्थान (रजि०) ने प्रधानमन्त्री व मुख्यमंत्री को जीएसटी नियमों में कठिनाइयों को दूर करने हेतु 16 सूत्रीय माँग पत्र प्रेषित किया है।

जीएसटी की समस्याओं के लिए प्रधानमन्त्री को भेजा पत्र

The Moradabad Mirror

Date   12.01.2024

By  विवेक कुमार शर्मा

मुरादाबाद: विजय मदान अध्यक्ष व्यापारी सुरक्षा फोरम संस्थान (रजि०) के अध्यक्ष ने बताया कि मुरादाबाद व्यापारी सुरक्षा फोरम संस्थान (रजि०) ने प्रधानमन्त्री जी मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश, वित्त मंत्री एवं वित्त सचिव भारत सरकार को पत्र भेजकर जीएसटी नियमों में व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने हेतु 16 सूत्रीय माँग पत्र प्रेषित किया है।

जीएसटी लागू होने के समय वर्ष 2017-18, 2018-19 शुरुवाती समय में जबकि व्यापारीगण, अधिवक्तागण, चार्टर्ड अकाउंटैंटस आदि जीएसटी नियमों को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहे थे एवं सभी व्यापारियों के पास जीएसटी रिटर्न अपलोड करने हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर/संसाधन जैसे कि इंटरनेट/कंप्युटर/सॉफ्टवेयर/टेक्निकल स्टाफ आदि उपलब्ध नहीं थे | जिस वजह से निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पढ़ रहा है |

1. उस समय जीएसटी फॉर्म्स अपलोड करने में गलतियाँ हुईं | सरकार ने भी समय-समय पर बयान जारी किए एवं परिपत्र जारी किए कि अधिकारी भूलवश हुई गलतियों के लिए व्यापारियों को तंग ना करें | यह भी कहा गया कि यदि व्यापारी ने जीएसटी रिटर्न में सेल विवरण नहीं भी भरा है और वह क्रेता व्यापारी को इस बात का प्रमाण पत्र देदे कि उसने अमुक व्यापारी को इस बिल नंबर द्वारा माल बेचा है तो उसका आई०टी०सी० क्लेम दे दिया जाए|

2. वर्तमान समय में वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के अपलोड किए गए जीएसटी रिटर्न्स के आपस मे मिलान करने में अधिकारियों के सामने कुछ गलतियाँ आई हैं, कुछ व्यापारियों ने अपने फॉर्म GSTR-1 विलंब से अपलोड किए थे, अपलोड करते समय पूरा टैक्स जमा कर दिया है लेकिन अधिकारी उस ITC को स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि उन्होंने रिटर्न विलंब से अपलोड किया है और क्रेता व्यापारी से विक्रेता द्वारा जमा किया हुआ टैक्स दोबारा 18% ब्याज सहित मांग कर रहे हैं, जिससे व्यापारी उत्पीड़ित हो रहा है, व्यापारी को उस अपराध के लिए दंडित किया जा रहा है जो उसने किया ही नहीं है।

3. व्यापारी से सप्लाइ चेन मांगा जाना अनुचित एवं अव्यवहारिक है| एक सप्लायर कभी भी अपने डीलर को यह नहीं बताता है कि वह माल उसने कहाँ से खरीदा है जबकि जीएसटी अधिकारी डीलर के सपलायर से परे आपूर्ति की श्रृंखला को देखने में सक्षम होते हैं।

4. यह देखा गया है कि वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2018-19 के लिए धारा 73 के तहत नोटिस में, धारा 73(9) के तहत कर की मांग से अलग न्यूनतम जुर्माना रुपये 20,000 (सीजीएसटी + एसजीएसटी) है । यहां तक कि 100 रुपये की एक छोटी सी कर मांग पर भी रुपए 20,000 का जुर्माना लगता है । यह डीलरों के लिए बहुत कठोर है | इसको तर्क संगत किया जाना चाहिए।

5. वर्ष 2017-18 और 2018-19 के लिए करदाताओं पर लगाए गए ब्याज और जुर्माने के संबंध में एक माफी योजना की घोषणा की जानी चाहिए क्योंकि इन वर्षों में जीएसटी अधिनियम डीलरों के लिए नया था। करदाता कर का भुगतान करने के लिए तैयार हैं लेकिन उस पर लगाए गए ब्याज और जुर्माने का भुगतान करने में झिझकते हैं क्योंकि दोनों ही बहुत अधिक हैं।

6. यह देखा गया है कि किसी वित्तीय वर्ष के लिए मामला तब भी बंद नहीं होता है जब उत्तर विधिवत दाखिल किए जाते हैं और उस वित्तीय वर्ष के लिए धारा 61 और 73 के तहत नोटिस का आदेश दिया जाता है। एक वित्तीय वर्ष में धारा 61, 73 और 74 के तहत नोटिस कई बार दिया जाता है, जैसे मासिक अंतर/त्रैमासिक अंतर के लिए और फिर वार्षिक अंतर के लिए। एक विशिष्ट वित्तीय वर्ष के मामले को एक साथ फाइनल करने की व्यवस्था होनी चाहिए। उस वित्त वर्ष के लिए मामला बंद होने के बाद नोटिस जारी नहीं होना चाहिए जब तक कि कोई धोखाधड़ी या कर की बड़ी चोरी न हो।

7. पहले से दाखिल रिटर्न में किसी भी त्रुटि या चूक को ठीक करने के लिए जीएसटी रिटर्न को संशोधित करने की व्यवस्था होनी चाहिए । इससे विभाग और डीलरों के लिए सामंजस्य आसान हो जाएगा क्योंकि डीलरों द्वारा हुई गलतियों को पहले ही सुधार लिया जाएगा।

8. वैट के प्रावधानों के समान जीएसटी में एक पक्षीय मूल्यांकन को पुनः खोलने की सुविधा होनी चाहिए।

9. पूर्ण पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए आयकर की तरह जीएसटी में फेसलेस असेसमेंट योजना शुरू की जानी चाहिए।

10. एसआईबी में, डीलरों को डीआरसी-3 के माध्यम से कर का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है और अधिकारी ऐसे कर के भुगतान होने तक निर्धारित परिसर को नहीं छोड़ता है। इस स्थिति में कर जमा करने की एक व्यवस्था होनी चाहिए, जिसे कर निर्धारण अधिकारी ही अंतिम रूप दे। यदि एसआईबी के दौरान डीआरसी 3 द्वारा कर का भुगतान किया गया है और बाद में मूल्यांकन अधिकारी द्वारा इसकी पुष्टि की गई है तो कोई डीलर अपील दायर नहीं कर सकता है क्योंकि उस स्थिति में कोई मांग उत्पन्न नहीं होगी।

11. जीएसटी के पहले के वर्षों में, भूलवश, कभी-कभी GSTR -1 में दाखिल राशि, GSTR -3B और व्यापारी के खातों में दर्शित राशि में अन्तर आने पर यदि GSTR-1 की राशि अधिक है, तो अधिकारी उसी राशि पर टैक्स की माँग करता है। GSTR -3B के अनुसार भुगतान किया गया कर पूरी तरह से सही है और ऑडिट किए गए खातों से मेल भी खा रहा है, तब भी अधिकारी खातों और अन्य सभी सबूतों को नजरअंदाज करते हुए GSTR-1 के आधार पर कर की मांग कर रहे हैं । जीएसटी शुरू में एक नया कानून था और ऐसी गलतियाँ आम थीं। जीएसटी रिटर्न में संशोधन के प्रावधानों के अभाव में गलती को सुधारा नहीं जा सका।

12. अधिकारी द्वारा की गई कर मांग पर 18% ब्याज दर बहुत अधिक है और व्यवहारिक नहीं है जबकि आयकर में विलम्ब होने पर 12% ब्याज लिया जाता है।

13. यदि आपूर्तिकर्ता का पंजीकरण विभाग द्वारा पिछली तारीखों से रद्द कर दिया गया है मगर माल की आपूर्ति के समय पंजीकरण सक्रिय था तो आवेदक को कर का इनपुट दिया जाना चाहिए।

14. जीएसटीआर-9 में आईटीसी के प्रारंभिक शेष का उल्लेख करने का कोई प्रावधान नहीं है।

15. ऐसे मामलों में भारी जुर्माना है जहां आपूर्तिकर्ता ने गलती से ईवे बिल पर गलत तारीख दर्ज कर दी है।

16. जीएसटी रिटर्न में खरीदार द्वारा खरीद की सूची (Purchase List) अपलोड करने का विकल्प होना चाहिए।

अधिकारियों से बात करने पर उनका कहना है कि आपकी बात तार्किक रूप से सही है लेकिन यह तर्क जीएसटी ऐक्ट के प्रावधानों के अनुसार मान्य नहीं है।

इससे व्यापारियों में रोष है एवं व्यापारी व्यापार करने में असहज महसूस कर रहा है। देश में न्याय प्रिय सरकार होने के बावजूद भी व्यापारियों को उस अपराध का दण्ड दिया जा रहा है जो उसने किया ही नहीं है। जिस व्यापारी ने जीएसटी रिटर्न विलंब से भरा है, उस पर नियमानुसार कार्यवाही होनी चाहिए थी। लेकिन जो टैक्स दे चुका है उससे दण्ड के रूप में टैक्स दोबारा ब्याज एवं शास्ति (पेनल्टी) वसूल किए जाने की प्रक्रिया चल रही है।

अत: निवेदन है कि अधिकारियों को इस अन्यायपूर्ण प्रक्रिया को अविलंब रोकने के निर्देश जारी किए जाएँ साथ ही जिन व्यापारियों को 2017-18 के असेस्मन्ट ऑर्डर जारी कर इस प्रकार के टैक्स की मांग की गई है उनको पुनरावृति (rectification) ऑर्डर जारी कर व्यापारियों का शोषण रोक कर व्यापारियों को न्याय प्रदान किया जाए।

 


The Moradabad Mirror

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button