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हरि भजन मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा आभूषण है – धीरशांतदास अर्द्धमौनी

खुशहालपुर में आयोजित किया गया कृष्ण रुक्मिणी विवाह महोत्सव

The Moradabad Mirror

By विवेक कुमार शर्मा
Date 05.05.2023

मुरादाबाद: खुशहालपुर में आयोजित कृष्ण रुक्मिणी विवाह महोत्सव में कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि भोगासक्त सकामी पुरुष के हृदय में भक्ति का निवास नहीं होता। कामना पूर्ण नहीं होती, तब तक तो उसके हृदय में वैसे आग लगी रहती है और यदि कहीं कामना की पूर्ति हुई तो कामना एककी आग और भी बढ़ जाती है। इसलिये भक्तिदेवी उससे दूर हट जाती है। भक्ति की प्राप्ति के लिये विषय-कामना का त्याग अति आवश्यक है।
यह सृष्टि भगवान् से ही उत्पन्न हुई है। भगवान् के अन्तर्गत ही रहती है और अन्तमें भगवान् में ही लीन हो जाती है; भगवान् से अलग सृष्टिकी कोई स्वतंत्र सत्ता है ही नहीं। ऐसे ही हम सभी सब समयमें भगवान् के अन्तर्गत ही रहते हैं। होहि राम को नाम जप, तुलसी तजि कुसमाज। भगवान् के होकर भगवान् का भजन करने का विलक्षण माहात्म्य प्रकट होता है। हम शंका करके भगवान् को पुकारते हैं। जैसे बालक जिस माँ का होकर पुकारता है, उस माँ को आना ही पड़ता है। ऐसे हम केवल भगवान् के होकर भगवान् को पुकारें तो भगवान् को आना ही पड़ेगा।
विद्या इन्सान का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है। वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है। विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है। विद्या बडी देवता है। राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं । इसलिए विद्याविहीन पशु ही है।
कामना के विषय को बदलकर उसे शुद्ध कर लोगे तो फिर वह स्वतः ही प्रेम के रूपमें परिणत हो जायगी। अपनी इन्द्रियों की तृप्ति के लिये होने वाली इच्छा का नाम ‘काम’ है और भगवत्प्रीत्यर्थ होने वाली इच्छाका नाम ‘प्रेम’ है। कामनाका विषय इन्द्रिय-सुख न हो, भगवत्प्रीति हो। ऐसा होते ही कामना प्रेमके रूपमें परिणत होकर आनन्द प्रदत्त करती है।
कार्यक्रम में पंकज कुमार सिंह, अभय कश्यप, श्रीमती शशि सिंह, संजीव कश्यप, अनुराधा खुराना, किरन सिंह, राजेश कुमार, सीमा कश्यप, राजेन्द्र कुमार, प्रीती सिंह, अनिल सिंह, नीतू कश्यप, अमिषा कश्यप’हरिदासी’ आदि उपस्थित रहे।


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