देशधार्मिक
Trending

जानिए क्या हैं पूर्णागिरी माता मंदिर उत्तराखण्ड का पौराणिक महत्व और मान्यताएं

पूर्णागिरी माता मंदिर उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले के टनकपुर में स्थित है

The Moradabad Mirror

By विवेक कुमार शर्मा
Date 01.06.2023

चंपाबात: माता पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत नगर में काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है । चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण चम्पावत ज़िले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ माँ भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। उत्तराखण्ड जनपद चम्पावत के टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की उंचाई पर यह शक्तिपीठ स्थापित है अर्थात ” पूर्णागिरी मंदिर”।

पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना :-

पूर्णागिरी मंदिर की यह मान्यता है कि जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे। तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग के टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरी ।
कथा के अनुसार जहा जहा देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए । माता सती का “नाभि” अंग चम्पावत जिले के “पूर्णा” पर्वत पर गिरने से माँ “पूर्णागिरी मंदिर” की स्थापना हुई ।

तब से देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि , कालिका गिरि , हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ ।

पौराणिक कथा पूर्णागिरी मंदिर :-

पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया । सन् 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से पहुंचे श्रीचन्द्र तिवारी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहा मूर्ति स्थापित कर इसे संस्थागत रूप दिया।
देश के चारों दिशाओं में स्थित कालिकागिरि, हेमलागिरि व मल्लिकागिरि में मां पूर्णागिरि का यह शक्तिपीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। आसपास जंगल और बीच में पर्वत पर विराजमान हैं ” भगवती दुर्गा “ । इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है । इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं । चैत्र मास की नवरात्र में यहां मां के दर्शन का विशेष महत्व बढ जाता है ।

पूर्णागिरी मंदिर की मान्यताय

सिद्ध बाबा मंदिर की कथा :-

पूर्णागिरी मंदिर के सिद्ध बाबा के बारे में यह कहा जाता है, कि एक साधू ने व्यर्थ रूप से माँ पूर्णागिरी के उच्च शिखर पर पहुचने की कोशिश करी। तो माँ ने क्रोध में साधू को नदी के पार फेक दिया । मगर दयालु माँ ने इस संत को “सिद्ध बाबा” के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया । जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा , वो उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे कि उसकी मनोकामना पूरी होगा । कुमाऊं के अधिकतर लोग सिद्धबाबा के नाम से मोटी रोटी बना कर सिद्धबाबा को भेट स्वरुप चढाते है
पूर्णागिरी मंदिर में स्थित “झूठे का मंदिर” की कहानी :-
पौराणिक कथा के अनुसार यह भी उल्लेख है कि एक बार संतान विहीन सेठ को देवी ने सपने में कहा कि “मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हे पुत्र होगा” । सेठ ने माँ पूर्णागिरी के दर्शन किये और कहा कि यदि उसका पुत्र होगा तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनाएगा । मनोकामना पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के मंदिर की जगह ताम्बे के मंदिर में सोने की पॉलिश लगाकर देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा तो ” टुन्याश ” नामक स्थान पर पहुचकर । वह ताम्बे के मंदिर को आगे नहीं ले जा सका था । तब सेठ को उस मंदिर को उसी स्थान में रखना पडा । तब से वो मंदिर पौराणिक समय से वर्तमान में “झूठे का मंदिर” नाम से जाना जाता है।

पूर्णागिरी मंदिर की मान्यता यह भी है कि देवी और उनके भक्तो के बीच एक अलिखित बंधन की साक्शी मंदिर परिसर में लगी रंगबिरंगी लाल-पीली चीरे आस्था की महिमा को बयान करती है । मनोकामना पूरी होने पर पूर्णागिरी मंदिर के दर्शन व आभार प्रकट करने और ‘चीर की गांठ’ खोलने आने की मान्यता भी है ।
नवरात्रियो में पूर्णागिरी मंदिर की मान्यता यह है कि नवरात्री में देवी के दर्शन से व्यक्ति महँ पुण्य का भागिदार बनता है । देवी सप्तसती में इस बात का उल्लेख है कि नवरात्रियो में वार्षिक महापूजा के अवसर पर जो व्यक्ति देवी के महत्व की शक्ति निष्ठापूर्वक सुनेगा । वो व्यक्ति सभी बाधाओ से मुक्त होकर धन धान्य से संपन्न होगा ।

पूर्णागिरी मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर मुंडन कराने पर बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है । इसलिए इसकी विशेष महत्वता है । लाखो तीर्थ यात्री इस स्थान में मुंडन करने के लिए पहुचते है। प्रसिद्ध वन्याविद एवम् आखेट प्रेमी जिम कॉर्बेट ने सन 1927 में विश्राम कर अपनी यात्रा में पूर्णागिरी के प्रकाश पुंजो को स्वयम देखकर इस देवी शक्ति के चमत्कार का देशी और विदेशी अखबारों में उल्लेख कर इस पवित्र स्थल को काफी मशहूर किया। कहा जाता है कि जो भक्त सच्ची आस्था लेकर पूर्णागिरी की दरबार में आता है,मनोकामना साकार कर ही लौटता है।


The Moradabad Mirror

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button