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यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश पहला राज्य बना

बता दें कि 4 फरवरी को उत्तराखंड कैबिनेट से समान नागरिक संहिता विधेयक को मंजूरी मिली थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में सबको समान अधिकार प्रदान करने हेतु हम सदैव संकल्पित हैं।

The Moradabad Mirror

By      विवेक कुमार शर्मा

Date 07.02.2024

मुरादाबाद : बुधवार का दिन भारत व उत्तराखंड के इतिहास में सुनहरे पन्नों में दर्ज़  हो गया उत्तराखण्ड देश का पहला प्रदेश बना जिसने यूसीसी (यूसीसी) सामान नागरिक संहिता को लागू किया। उत्तराखंड विधानसभा में ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ विधेयक पेश कर दिया गया। इस विधेयक का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो ।उत्तराखंड विधानसभा में बुधवार को समान नागरिक संहिता विधेयक पारित हो सकता है। विधानसभा में सत्ताधारी भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत हासिल है। उसके 47 सदस्य हैं। कुछ निर्दलीय विधायकों का भी उसे समर्थन प्राप्त है। इससे पहले मंगलवार को समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा में पेश किया गया। विधानसभा और राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इस तरह से गोवा के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन जाएगा। 

आइये जानते हैं कि उत्तराखंड में पेश किया गया विधेयक क्या है? इसके प्रावधान क्या हैं? समान नागरिक संहिता से उत्तराखंड में क्या बदले

मंगलवार को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। इसे ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ नाम दिया गया है। 182 पन्नों के इस कानूनी मसौदे में कई धाराएं और उप-धाराएं हैं। इसमें उत्तराधिकार, विवाह, विवाह-विच्छेदन और लिव इन रिलेशनशिप के बारे में नियम-कानूनों का उल्लेख किया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बुराइयों के खात्मे के लिए उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए देश में सबसे मुफीद राज्य है। इस बिल का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो।

विवाह के बारे में क्या है तर्क दिए गए हैं

विधेयक के भाग-1 में विवाह और विवाह विच्छेद का जिक्र है। वहीं भाग-2 में विवाह और विवाह विच्छेद पंजीकरण को जगह दी गई है। इसके लिए अहम प्रावधान हैं:

समान नागरिक संहिता सभी के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, जिसमें युवक की आयु 21 वर्ष और युवती की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।

इस संहिता में पार्टीज टू मैरेज यानी किन-किन के मध्य विवाह हो सकता है, इसे स्पष्ट रूप से बताया गया है। विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच ही संपन्न हो सकता है।

इस संहिता में पति अथवा पत्नी के जीवित होने की स्थिति में दूसरे विवाह को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया गया है।
अब तलाक के बाद दोबारा उसी पुरुष से या अन्य पुरुष से विवाह करने के लिए महिला को किसी प्रकार की शतों में नहीं बांधा जा सकता। यदि ऐसा कोई विषय संज्ञान में आता है, तो इसके लिए तीन वर्ष की कैद अथवा एक लाख रुपए जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है।

विवाह के उपरांत वैवाहिक दंपतियों में से कोई भी यदि बिना दूसरे की सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को तलाक लेने और गुजारा भत्ता क्लेम करने का पूरा अधिकार होगा।

विवाह का पंजीकरण अब अनिवार्य रूप से कराना होगा। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम तथा जिला और राज्य स्तर पर इनका पंजीकरण कराना अब संभव होगा। प्रक्रिया को और ससत बनाने के लिए एक वेब पोर्टल भी होगा जिस पर जाकर पंजीकरण संबंधी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

एक महिला और एक पुरुष के मध्य होने वाले विवाह के धार्मिक/सामाजिक विधि-विधानों को इस संहिता में छेड़ा नहीं गया है। अर्थात वे लोग जिस पद्धति से भी विवाह करते चले आ रहे हैं, जैसे कि सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, होली यूनियन या आनंद कारुज अथवा इस प्रकार की अन्य परंपराएं, वे लोग उन्हीं प्रचलित परंपराओं के आधार पर विवाह संपन्न कर सकेंगे।

 

विवाह विच्छेदन को लेकर क्या कहा गया है?
विधानसभा में सरकार ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू न होने का सबसे ज्यादा नुकसान अभी तक मातृ शक्ति को उठाना पड़ा। पुरुष लचर कानून का लाभ उठाकर बहुविवाह, उत्ताक आदि करते रहे।

समान नागरिक संहिता लागू होने पर कोर्ट में लंबित पड़े मामलों का भी जल्द निपटारा हो सकेगा। समान नागरिक संहितासे मुस्लिम बहिनो की स्थिति बेहतर होगी। मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।

देश में सभी धर्मों के अलग-अलग पर्सनल लॉ है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। लेकिन समान नागरिक संहिता में शामिल बिंदुओं से अतिरिक किसी भी धर्म को मान्यताओं से छेड़छाड़ नहीं की गई है।

कई सामाजिक बुराइयां धार्मिक रीति-रिवाजों की आड़ में पनपती हैं। इसमें गुलामी, देवदासी, दहेज, तीन तलाक, बाल विवाह या अन्य प्रथाएं शामिल हैं। समान नागरिक संहिता इन सभी सामाजिक बुराइयों के खात्मे की गारंटी देता है।

 

लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में क्या नियम होंगे?

विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा सहमति बनाम स्थापित सामाजिक नैतिक मानदंड से जुड़ा है। देश में हर नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कानून बनाए गए हैं और उसकी सुरक्षा की गई है लेकिन अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था में संतुलन भी जरूरी है। इसीलिए उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है।

इस एक्ट में यह प्रावधान किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए और उसको लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले पहचान करने के उद्देश्य से एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा और 21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता पिता को देनी अनिवार्य होगी।

उत्तराखंड सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है ताकि ऐसे जोड़ों को कहीं रहने के लिए किराए पर मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकताओं पर कोई कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े।

 

उत्तराखंड समान नागरिक संहिता

उत्तराधिकार के बारे में क्या है?

विधानसभा में विधेयक को पेश करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रभावी एवं प्रचलित व्यवस्थाओं में सम्पत्ति में उत्तराधिकार या इच्छापत्र (वसीयत) के अधिकारों में व्यापक विसंगति या भिन्नता रही है। उदाहरण के रूप में देखें तो अधिकांश प्रावधानों में मृतक की सम्पत्ति में माता, पति-पत्नी और बच्चों को तो अधिकार है, परन्तु पित्ता को अधिकार नहीं दिया गया है। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति की सन्तानों में लिंग के आधार पर भी असमानता है। विवाहित और अविवाहित पुत्री को भी अलग-अलग अधिकार है।

समान नागरिक संहिता में माता-पिता को मृतक की सम्पत्ति में एक अंश निर्धारित किया गया है। इसकी व्यवस्था धारा 49 के स्पष्टीकरण व अनुसूची-2 के श्रेणी-1 में की गई है। सम्पत्ति के अधिकार में पुत्र-पुत्री में व्यापक असमानता को दूर किया जा रहा है।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम व शरीयत अधिनियम में उत्तराधिकार की भिन्नता एवं पुत्री के अधिकार की विसंगतियों को समान नागरिक संहिता वो भाग-2 के अध्याय-1 में दूर करते हुए एक व्यक्ति की समस्त सन्तानों को समान अधिकार प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गई है। सदियों बाद उत्तराधिकार से सम्पत्ति प्राप्त करने के अधिकार में बेटा-बेटी एक समान का सिद्धान्त को हम मूर्त रूप देने जा रहे हैं।

समान नागरिक संहिता ने बच्चों के सम्मान और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित करने का काम किया है।

यह कानून गर्भस्थ शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का काम कर रहा है। इसके लिए इस संहिता के धारा-55 में अन्य सन्तानों की भांति गर्भस्थ शिशु को भी समान अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं।

समान नागरिक संहिता में धारा-3 (1-क) में किसी भी रिश्ते से उत्पन्न होने पाले बच्चे को परिभाषित कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर धारा-49 में किसी भी प्रकार से उत्पन्न बच्चों को सम्पत्ति में समान रूप से अधिकार प्रदान कर दिया गया है।समान नागरिक संहिता हत्यारे पुत्र को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने जा रही है। संहिता की धारा-58 में यह व्यवस्था की गई है। अब कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए हत्या करने जैसे जघन्य एवं घिनौने अपराध से दूर रहेगा।

समान नागरिक संहिता की धारा-3 (1-3), 3 (3-अ) और अध्याय-2 यह प्रावधान करता है कि कोई व्यक्ति किसी भी माध्यम से प्राप्त समस्त सम्पदा की वसीयत स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति को कर सकता है, और अपने जीवनकाल में वसीयत को बदल भी सकता है, चाहे तो वापस भी ले सकता है।


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